
हेलो दोस्तों ! जानती हूँ शर्माजी इनफिनिटी पर आप सभी ज्यादातर तकनीकी जगत से जुडी खबरें ढूढंते हैं, लेकिन आज की कहानी ज़रा अलग है। ये कहानी विश्वभर में तेज़ी से फ़ैल रही कोरोनावायरस (Covid-19) के बारे में मेरा अनुभव आप तक पहुंचाएगी। साथ ही हम जो टीवी पर खबरों में देखते हैं उससे कितना अलग अनुभव है वो भी आपको पता चल सकेगा। अगर मेरे Covid positive के इस अनुभव से किसी एक भी व्यक्ति जो कोरोना से जूझ रहा है को सहायता मिल सकी, तो इसे लिखना भी सफल होगा। यहां इसलिए लिख रही हूँ क्योंकि मैं चाहूंगी कि आप जानें कि कोरोना के साथ साथ और चीज़ें भी जो तकलीफ़ देती हैं वो कितनी भयावह हैं।
सबसे पहले मैं ये आपको ये बताती हूँ कि हम एक ही परिवार के 5 लोग Covid positive थे और सभी के लक्षण पूरी तरह अलग थे।
कोरोनावायरस के लक्षणों के बारे में अब तक आप सब गूगल कर चुके होंगे, मैंने भी पहले किया था, लेकिन जिस दिन मेरे घर में मेरे पिताजी का Covid-19 टेस्ट पॉजिटिव आया, उस दिन इस बीमारी के बारे में गूगल से पढ़ी हुई सारी जानकारी धरी रह गयी और एक धक्का सा लगा। दरअसल रिपोर्ट आने से पहले ही बुखार के कारण बेहोश हुए मेरे पापा को आई.सी.यू. में हमने भर्ती किया था। उस पर दूसरा धक्का तब लगा जब डॉक्टर ने माँ को भी इस बीमारी से पॉजिटिव घोषित किया। मैं ये तो जानती थी कि कोरोना के मरीज़ से अस्पताल में मिलने नहीं जा सकते, लेकिन जब अपने माँ-बाप अस्पताल में गंभीर हालत में हो और मिल ना पाएं, तो कैसा लगता है, समझाना बहुत मुश्किल है।

मुझे लगा बहुत बुरा हुआ, मैं रो रही थी, तभी मन में खटका कि पापा के साथ तो मैंने और बच्चे ने भी काफी समय बिताया है। अगले ही दिन मेरे पति को भी रात से बुखार आने लगा और मुझे भी हल्का ज़ुखाम था। मैंने और मेरे पति ने उसी दिन सरकारी अस्पताल से संपर्क करने की कोशिश की। हेल्पलाइन पर कई दफा फ़ोन करने के बाद किसी से बात नहीं हो पाई और फिर नज़दीकी सरकारी अस्पताल की हेल्पलाइन पर किसी से हमारी बात हुई। उससे हमने पूछा कि ‘हमारे पिताजी Covid positive हैं और हम उनके संपर्क में आये थे, अब हमें क्या करना चाहिए ?’ उसने कहा – ‘ यहां आकर टेस्ट करवाइये’। फिर मैंने कहा कि मेरा एक 5 साल का बेटा है और मेरे पति और मुझे थोड़ा बुख़ार है, शरीर टूट रहा है, क्या आप बता सकते हैं कि वहाँ हमें कितना समय लग सकता है। बदले में रूखे स्वर में जवाब मिला, “आओ और टोकन लेकर लाइन में लगो, जब नंबर आये, तब टेस्ट करवाना।” मैं ये नहीं कहती कि इस तरीके में कोई खराबी है, लेकिन इस बीमारी का डर हमारे अंदर इतना था कि बुख़ार, थकान और 5 साल के बच्चे के साथ उस लाइन में खड़े होने की हिम्मत नहीं थी मुझमें, साथ ही उस इंसान के रूखे स्वर ने मन में और निराशा भर दी।
सरकारी हेल्पलाइन से हमें खुद संपर्क करने पर भी उस शख्स ने न तो इस बीमारी से जुड़ी कोई जानकारी दी न ही कोई भरोसा कि आप ठीक हो जाएंगे और सच कहूं तो मैं यही ढूढ़ रही थी। इसके बाद हमने प्राइवेट अस्पताल से टेस्ट करवाने का निर्णय लिए जहां हम तीनों के टेस्ट और डॉक्टर की फीस के लिए हमने 15,0 00 रूपए की कीमत अदा की। इसके बाद शुरू हुआ परेशानियों का असली सफ़र।

एक तरफ माँ-बाप अस्पताल में थे, दूसरी तरफ मेरा छोटा भाई अकेला अपने घर पर क्वारंटाइन में और मैंने अपने बच्चे और पति के साथ खुद को अपने घर में क्वारंटाइन किया। हमने डॉक्टर से भी संपर्क किया, उसने हमसे फ़ोन पर हमारी परेशानी पूछी और कहा कि घर में भी सोशल डिस्टन्सिंग का पालन करें और फिर अपना अकाउंट नंबर भेजकर कहा कि इस पर 1200 रूपए ट्रांसफर कर दें। डॉक्टर की फीस जायज़ थी, लेकिन इस बीमारी के कारण उसने भी हमें मिलने के लिए मना किया और फ़ोन पर ही सलाह दी और कहा बच्चे का विशेष ख्याल रखें, आप सभी ठीक हो जाएंगे।
अगले दिन रिपोर्ट आनी थी और कहीं न कहीं मैं जानती थी, कि पॉजिटिव आ सकती है। मेरे और पति की रिपोर्ट पॉजिटिव आयी, फिर एक रिपोर्ट आयी जिसमें मेरे छोटे से बेटे का नाम, उसकी उम्र 5 साल मोटे मोटे अक्षरों में लिखी हुई थी और नीचे पॉजिटिव लिखा था, जिसे देखकर हम दोनों पति-पत्नी को उस रात नींद नहीं आ पायी। लेकिन बहुत कृपा रही भगवान् की कि मेरे बेटे को कोई कमज़ोरी, ज़ुखाम या किसी भी प्रकार का लक्षण नहीं था। लेकिन मन में बहुत डर था कि उसमें भी अगले दिन से कोई लक्षण न दिखने लगे। परिवार को लेकर हर घंटे बहुत ज्यादा डर में थे हम दोनों, क्योंकि पहला हफ्ता था और पता नहीं था कि तबियत बिगड़ेगी या सुधरेगी।

हम सभी को हल्के से बुख़ार ने इतनी थकान दी कि अपना खाना बना पाना भी लगभग नामुमकिन सा हो गया। सोसाइटी में मैंने खुद ख़बर दी कि हम Covid positiveहैं और अचानक जैसे पड़ोसियों ने छत पर आना छोड़ दिया। जिन लोगों से मेरी रोज़ बात होती थी, उनके अब दरवाज़े भी नहीं खुलते थे, जिनसे उम्मीद थी, उनमें से किसी का फ़ोन नहीं आया। लेकिन जिनसे बिलकुल उम्मीद नहीं थी, उन्होंने किसी तरह हमारा नंबर ढूँढ़कर हमें फ़ोन किया और हर तरह की सहायता का आश्वासन दिया। लेकिन केवल दो लोगों को छोड़कर अचानक जैसे सभी हमसे नाराज़ से हो गए थे। मैं मानती हूँ कि सबको डर लगता है लेकिन क्या एक फ़ोन करने से या किसी के दरवाज़े पर ज़रुरत की चीज़ें रख देने से आपको कोरोना हो जाएगा ? अगर आपकी भी यही सोच है, तो बेहद गलत है। कभी सोचिये कि पड़ोसी तो डरते हैं, लेकिन जो लोग अपने छोटे से बच्चे के साथ इस बीमारी का शिकार हुए, उनकी मानसिक स्थिति कैसी होगी। जब सबसे ज़्यादा मदद के हाथ आगे आने चाहिए, तभी हाथ खींच लेना, ये एक अच्छे शख़्स की पहचान नहीं है।
मैं यहां ये ज़रूर कहूँगी कि इस बीमारी को लेकर जागरूकता और सतर्कता बेहद ज़रूरी है, लेकिन गलत जानकारी और डर इस बीमारी को और ज़्यादा डरावना बना रहा है। आप बाहर का खाना सप्ताह में तीन दिन खा सकते हैं, मास्क पहनकर शादी में अपनी उपस्थिति दे सकते हैं, लेकिन एक कोरोना पीड़ित की सहायता नहीं कर सकते, वाह रे समाज वालों !
इन सब लोगों के कारण हमें बहुत अजीब महसूस हो रहा था, मैंने मार्च के महीने से लॉकडाउन का पूरा पालन किया, सिर्फ रोज़ाना की दूध-सब्ज़ी लाने के लिए ही हम दो दिन में एक बार घर से बाहर निकल रहे थे, फिर भी किसी तरह ये रोग हो गया और हम सोसाइटी में जैसे दोषी बन गए। लेकिन वहीँ एक अच्छी ख़बर ये आयी कि मेरे पापा अब आयी.सी.यू. से बाहर थे और उनकी हालत स्थिर थी। लेकिन अगले ही दिन से मेरी माँ की तबियत बिगड़ने लगी और डॉक्टर ने मेरे भाई को कहा कि अब उन्हें भी माँ को लेकर थोड़ा डर लग रहा है, उस दिन हम बहुत रोये।
मेरी माँ की उम्र 57 साल है, और पिछले 12 दिनों से उनका बुख़ार लगातार बना हुआ था, हमें समझ नहीं आ रहा था कि क्वारंटाइन में रहते हुए हम कैसे और क्या करें। उन दिनों में तो हमने एक दुसरे से कुछ नहीं कहा लेकिन सच कहूं तो एक बार को लगा था कि माँ को बचा पाएंगे या नहीं। उस पल ने हमें ये बताया कि वो हमारे लिए कितनी ज़रूरी हैं।

दूसरी तरफ हमारे शरीर की थकान भी बढ़ रही थी और बड़ी मुश्किल से सिर्फ दो बार का खाना बन पाता था और उसे खा कर हम ऐसे ही बिखरे हुए घर में सो जाते थे। थोड़ा सा भी काम करने पर सांस लेने में परेशानी शुरू हो जाती थी। किसी तरह से भाई का खाना बनाकर बैग में रखकर रस्सी से नीचे के फ्लोर तक लटकाती थी और मेरे ससुर जी उसके दरवाज़े के बाहर वो खाना रख आते थे। बहुत मुश्किल कटा था इस बीमारी का दूसरा हफ्ता। मम्मी की बिगड़ती हालत में अचानक सुधार हुआ जब डॉक्टर को एक नयी दवा मिली। लेकिन दूसरे ही दिन इस दवा के भारी साइड-इफेक्ट्स भी देखने को मिले, बस किसी तरह बुख़ार चला गया उनका।
बहुत सारी परेशानियों से लड़कर किसी तरह 18 दिन के बाद दोनों अस्पताल से डिस्चार्ज होकर घर लौटे, लेकिन माँ इतनी कमज़ोर है कि खुद अपने बाल भी नहीं बना सकती है और मैं यहां से सिर्फ खाना ही पहुंचा पाती हूँ। लगभग एक महीना हो चुका है और मैं इतनी गंभीर स्थिति में भी एक बार उन्हें देखने नहीं जा सकती हूँ।
आप शायद इस बीमारी के बारे में इंटरनेट पर सब पढ़ चुके होंगे, लेकिन आशा करती हूँ कि आप में से किसी को इसका अनुभव न हो, क्योंकि वो वाकई अच्छा नहीं है। कुछ चीज़ें बहुत महत्वपूर्ण जो मेरे सामने आयीं हैं वो ये हैं कि –
- 55 साल से ऊपर वालों के लिए ये बीमारी वाकई ख़तरनाक है।
- हम 30-40 वर्ष तक के लोग इससे घर पर ही ठीक हो सकते हैं, लेकिन अपना ख़याल रखने की बेहद ज़रुरत है।
- ये बीमारी खतरनाक है, लेकिन उतनी नहीं है, जितना लोगों में इसका डर है। इतना भी मत डरिए कि बीमारी से नहीं, डर से आप जंग हार जाएँ।
- समाज में किसी को भी ये बीमारी हो सकती है, लेकिन कोई भी इसे जान-बूझकर दावत नहीं देता, इसीलिए उससे घृणा या अनदेखा ना करें, क्योंकि यही वो वक़्त है, जब पड़ोसियों की सबसे ज्यादा ज़रुरत होती है। आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि एक तो बीमार, अपना काम करने में असक्षम, किसी की सहायता का कोई आसरा नहीं और ऊपर से लोगों का रूखापन कैसा लगता होगा।
- Covid positive होने पर तनाव भी आपका दुश्मन बन सकता है, इसीलिए अगर कोई आस-पास के लोग आपसे मुंह-मोड़ते भी हैं, तो भी निराश न हों।
- Covid positive होने के बाद अपने अनुभव से कहूं तो मुझे और मेरे परिवार को दवाओं ने नहीं, बल्कि घरेलु नुस्खों ने ही बचाया है।
हालांकि इस कहानी में आपने काफी कुछ पढ़ा, लेकिन इसके और भी पहलू हैं जिनकी बहुत सारी जानकारी अब भी बाकी है। यहां मैंने बताया कि क्वारंटाइन में मैं किन परेशानियों और मानसिक स्थिति से जूझ रही थी। लेकिन क्या आप नहीं जानना चाहेंगे कि अस्पताल, टेस्ट सेंटर में इस बीमारी को लेकर क्या हालात हैं और डॉक्टरों के साथ हमारा अनुभव कैसा रहा ? यहां भी हमने काफी चुनौतियां देखीं, जिन्हें मैं अगले लेख में आपके साथ साझा करुँगी।
आशा करती हूँ, कि इस लेख को पढ़ने के बाद आपके मन में जो हो, आप भी कमेंट में अवश्य लिखें।
यहे भी पड़े – कोरोना होने पर मुझे इन घरेलू नुस्ख़े और दवाओं से मिली राहत – ये रही मेरी दिनचर्या
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